नागा साधु का रहस्य | Secret of Naga Sadhu in Hindi

 

Naga Sadhu Ka Rahasya
Naga Sadhu Ka Rahasya

Naga Sadhu Ka Rahasya Jis Per Aapko Yakin Nahin Hoga


वर्तमान में नागा साधुओं के कई अखाड़े है किंतु हर अखाड़े के दीक्षा के अपने नियम होते हैं । कुछ नियम सभी अखाड़े में समान होते हैं कोई भी व्यक्ति जब नागा साधु बनने के लिए आता है तो सबसे पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण और स्थिति को देखा जाता है । उसे लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है इसमें दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को भी देखा जाता है । किसी को दीक्षा देने से पहले यह देखा जाता है कि दीक्षा लेने वाला पूरी तरह से इच्छा और वासनाओं से मुक्त हुआ है या नहीं । ब्रह्मचर्य के साथ दीक्षा लेने वाले के मन में सेवाभाव होना भी जरूरी है ऐसा माना जाता है जो साधु बन रहा है वह धर्म, राष्ट्र और मानव समाज की सेवा और रक्षा करता है । दीक्षा लेने वाले साधुओं को अपने गुरुओं और अपने से बड़े साधुओं की सेवा में करनी पड़ती है । दीक्षा के समय ब्रह्मचर्य की अवस्था 17- 18 वर्ष से कम की नहीं होनी चाहिए । दीक्षा से पहले जो महत्वपूर्ण कार्य हैं खुद का श्राद्ध और पिंडदान करना, इस प्रकार साधक खुद को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से श्राद्ध करता है उसके बाद उसके गुरु द्वारा नया उसे नया नाम और पहचान दी जाती है । नागा साधुओं को वस्त्र पहनने की अनुमति नहीं होती है अगर वस्त्र पहनने है तो केवल गेरुआ रंग के वस्त्र ही पहन सकते हैं । नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है भस्म का ही श्रृंगार किया जाता है नागा साधुओं को भस्म और रुद्राक्ष करना धरण करना होता है बालों का परित्याग करना होता है और चोटी रखने पर भी मनाई होती है । नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक बार ही भोजन करना होता है वह भी भिक्षा मांगकर लाया जाता है । एक नागा साधु को केवल 7 घरों से भिक्षा लेना होता है अगर 7 घरों से कुछ ना मिले तो उसे भूखा ही रहना पड़ता है और जो भी मिले उसे पसंद-नापसंद छोड़कर प्रेम से खाना होता है । नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य साधन का उपयोग नहीं कर सकता, यह गद्दी पर भी नहीं सोते बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं । दीक्षा के बाद गुरु से मिले मंत्र में ही उसकी पूरी आस्था होनी चाहिए उसके भविष्य की साधना इस गुरु मंत्र पर ही आधारित होती है । यह बस्ती से बाहर निवास करते हैं किसी को प्रणाम नहीं करते है ना ही किसी की निंदा करते हैं यह केवल सन्यासी को ही प्रणाम करते हैं । नागा साधु बनने के लिए बेहद कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जो किसी सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है उन्हें सेना की तरह तैयार किया जाता है । इन्हें दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है जिसमें कई वर्षों का समय लगता है । जब कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए अखाड़े में आता है तो उसे अखाड़े में लेने से पहले यह तहकीकात होती है कि वह क्यों साधु बनना चाहता है और उस व्यक्ति और उसके परिवार को देखने के बाद उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है । उसके बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है जिसमें 6 महीने से लेकर 12 वर्ष का समय लग जाता है जब अखाड़ा और उस व्यक्ति के गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा लेने लायक है उसके बाद उसे ब्रह्मचर्य से महापुरुष बनाया जाता है । उसके 5 गुरु बनाए जाते हैं वह 5 गुरु पंचदेव यानी शिव,विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश होते हैं इन्हें भस्म, भगवा और रुद्राक्ष जैसी चीजें भी दी जाती है जोकि नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं । महापुरुष के बाद उन्हें अवधूत बनाया जाता है इसमें अपने बाल कटवाने होते हैं अवधूत रूप में दीक्षा लेने पर पिंडदान करना होता है यह पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं । यह संसार और परिवार के लिए मर जाते हैं इनको केवल सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा करनी होती है इसके लिए उन्हें 24 घंटे अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए पिए हाथ में दंड और मिट्टी का बर्तन लेकर खड़े रहना होता है । उसके बाद उनके अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों द्वारा झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है उसके बाद वह नागा साधु बन जाता है । नागा साधु के बाद महंत, श्री महंत, जमातीय महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर बनते हैं । वर्तमान में कई अखाड़ों में महिलाओं को नागा साधु की दीक्षा दी जाती है इनमें विदेशी महिला भी काफी संख्या में शामिल है । महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है यह वस्त्र पहनकर ही वह स्नान करती हैं इन्हें कुंभ मेले में भी वस्त्र पहनकर ही स्नान करना होता है । वर्तमान सनातन धर्म की नींव आदि गुरु शंकराचार्य जी ने रखी थी । भारत में कई आक्रमणकारी चले आ रहे थे आदि गुरु शंकराचार्य जी ने स्नातन धर्म की सुरक्षा के लिए देश के चारों कोनों में गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारका पीठ और ज्योतिरमठ पीठ की स्थापना की । आक्रमणकारियों से बचने के लिए उन्होंने हथियार चलाना सीखने पर बल दिया ऐसे मठ बने जहां व्यायाम और शस्त्र चलाने का अभ्यास कराया जाता है जिन्हें अखाड़ा कहां जाता है ।


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