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Jwala Devi Mandir Ka Rahasya |
Jwala Devi Mandir Ka Rahasya Jankar Aapko Yakin Nahin Hoga
आज हम आपको एक सत्य घटना से अवगत कराने जा रहे हैं जब माता की अद्भुत चमत्कार के सामने बादशाह को झुकना पड़ा जिसने पहले तो माता के चमत्कार पर शक किया और बाद में नंगे पैर दौड़कर माता के दरबार में माफी मांगने आया । यह घटना 1550 से 1600 के बीच की है जब भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन हुआ करता था । हिमाचल के नादौन गांव में माता का सच्चा सेवक ध्यानु भक्त रहता था एक बार वह 1000 यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था । इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया ।
बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे थे । ध्यानु ने बताया में ज्वाला माई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं वह भी माता के भक्त हैं और यात्रा पर जा रहे हैं । अकबर ने सुनकर कहां यह ज्वाला माई कौन है और वहां जाने से क्या होगा , ध्यानु भक्त ने बताया महाराज ज्वाला माई संसार का पालन करने वाली माता है जो भक्त सच्चे हृदय से प्रार्थना करता है उसे स्वीकार करती हैं उनका प्रताप ऐसा है कि उनके स्थान पर बिना तेल और बाती की ज्योति जलती रहती है । हम लोग हर वर्ष उनके दर्शन को जाते हैं अकबर ने कहा अगर तुम्हारी भक्ति सच्ची है तो देवी माता जरूर तुम्हारी इज्जत की रक्षा करेंगी ।
अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल ना रखें तो तुम्हारी इबादत का क्या फायदा या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं या तो तुम्हारी इबादत झूठी है इम्तिहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करवा लेना इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई । ध्यानु भक्त को कोई उपाय नहीं सूझा उसने बादशाह से 1 महीने के समय तक घोड़े के सिर और धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की । अकबर ने ध्यानु भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई , बादशाह से आज्ञा लेकर ध्यानु भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार में पहुंचा ।
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Jwala Devi Mandir Ka Rahasya |
स्नान , पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया । सुबह में आरती के समय हाथ जोड़कर ध्यानु ने प्रार्थना की हे मां आप तो अंतर्यामी हैं बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है मेरी लाज रखना , मेरे घोड़े को अपनी कृपा और शक्ति से जीवित कर देना । कहां जाता है कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को फिर से जिंदा कर दिया , यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया उसने अपनी सेना बुलाई और मंदिर की ओर चल पड़ा ।
वहां पहुंचकर फिर उसके मन में शंका हुई , उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी डलवा दिया लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं , इतना ही नहीं उसने उन ज्वालाओ के ऊपर चट्टान रखवाकर उन्हें बुझाने का प्रयास किया लेकिन माता के चमत्कार से वो ज्वालाऐ चट्टान को चीरकर बाहर आ गई ।
तब जाकर उसे मां की महिमा पर यकीन हुआ और उसने सवामन यानी 50 किलो के सोने का छत्र चढ़ाया । लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया और वह छत्र गिरकर काला पड़ गया और वह छत्र ना जाने किस धातु का बन गया ।
आप आज भी यह छत्र ज्वाला देवी मंदिर में देख सकते हैं यहां पर 11 जगहों पर बिना तेल , घी के हजारों सालों से ज्योतियां जलती हैं राजा अकबर द्वारा घमंड में चढ़ाया गया सवामन सोने का छात्र भी किसी धातु का नहीं पाया जाता । वैज्ञानिक इसे लेबोरेटरी में टेस्ट कर चुके हैं यहां हवन और जप कराने का हजार गुना फल मिलता है और दर्शन मात्र से ही कई पापों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।
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