कामाख्या मंदिर का रहस्य Mystery of Kamakhya Temple in Hindi

 

Kamakhya Mandir Ka Rahasya
Kamakhya Mandir Ka Rahasya

Kamakhya Mandir Ka Rahasya Jankar Hairan Reh Jayenge


कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । यह भारत का बेहद ही प्रसिद्ध मंदिर है यह मंदिर सत्य की देवी सती का मंदिर है । कामाख्या शक्तिपीठ चमत्कारों और रोचक तथ्यों से भरा पड़ा है वैसे तो इस शहर में घूमने और देखने के लिए बहुत कुछ है लेकिन अगर आपने यहां का रहस्यमय कामाख्या मंदिर नहीं देखा और उसके दर्शन नहीं किए तो आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी । आईए जानते हैं इस मंदिर के अद्भुत रहस्य के बारे में ।


प्रसाद में दिया जाता है गिला वस्त्र


यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में गीला कपड़ा दिया जाता है जिसे अंबुबाची वस्त्र कहते हैं । देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है । 3 दिनों बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं तो यह वस्त्र लाल हो जाता है और बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है । हिंदू धर्म के अनुसार यह 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसकी गिनती सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में होती है । गुवाहाटी से 7 किलोमीटर की दूरी पर निलांचल की पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर के अलावा 10 महाविद्या को समर्पित मंदिर भी हैं ।


नदी लाल हो जाती है


ऐसा बताया जाता है कि मंदिर में देवी सती की कोई मूर्ति नहीं है जब आप मंदिर में प्रवेश करेंगे तो वहां आपको देवी के मंदिर के अंदर योनिनुमा संरचना दिखेगी इस संरचना को देवी सती की योनि के रूप में पूजा जाता है । कामाख्या देवी को बहते हुए खून की देवी भी कहां जाता है यहां देवी के गर्भ और योनि को मंदिर के गर्भ में रखा गया है जिसमें जून के महीने में रक्त का प्रवाह होता है । यहां के लोगों की मान्यता है कि इस दौरान देवी अपनी मासिक चक्र में होती हैं इस दौरान यहां स्थित ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है । देवी के मासिक चक्र के समय यह मंदिर 3 दिनों तक बंद रहता है और इस ब्रह्मपुत्र नदी के लाल पानी को यहां आने वाले भक्तों में बांट दिया जाता है ।


तांत्रिक देवी की पूजा


कामाख्या मंदिर गुवाहाटी का मुख्य धार्मिक अट्रैक्शन है यह मंदिर गुवाहाटी के अंतर्गत आने वाले नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित है यह रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर की दूरी पर है । कहते हैं यह मंदिर तांत्रिक देवी को समर्पित है इस मंदिर में आपको मुख्य देवी कामाख्या के अलावा देवी काली के अन्य 10 रूप भी देखने को मिलेंगे । यह मंदिर पहाड़ी पर बना हुआ है और इस मंदिर का अपना ही तांत्रिक महत्व है इसे तांत्रिकों का गढ़ भी कहां जाता है ।


स्त्री की रचनात्मकता का प्रतीक


इस मंदिर के बारे में कहां जाता है कि 16 वी शताब्दी में इसे नष्ट कर दिया गया था जिसे 17 वी शताब्दी में बिहार के राजा नर नारायण द्वारा पुनः निर्मित किया गया था । इस मंदिर के शिखर में भगवान गणेश के अलावा हिंदू धर्म से जुड़े अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं । कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस समय मंदिर के पुजारियों द्वारा नदी में सिंदूर डाल दिया जाता है जिससे यहां का पानी लाल प्रतीत होता है । कारण चाहे जो हो यहां आने वाले और मां कामाख्या में आस्था रखने वाले भक्तों की मनोकामना मां जरूर पूरी करती हैं और उन्हें सभी संकटों से दूर रखती हैं । यह मंदिर एक स्त्री की रचनात्मकता को दर्शाता है और यह बताता है कि स्त्री ही इस ब्रह्मांड की जननी है और हमें उसका हर हाल में सम्मान करना चाहिए ।


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