भागवत गीता का सार | Geeta Saar in Hindi

 

Bhagwat Geeta Ka Saar
Bhagwat Geeta Ka Saar

Bhagwat Geeta Ka Saar Aur Anmol Vachan


हमारे शरीर के अंदर आत्मा रहती है और यह जीवन एक परीक्षा है अपने सबसे अच्छे स्वरूप को बाहर लाने के लिए । भागवत गीता वह किताब है जो हमें इस परीक्षा को पास करने में अहम भूमिका निभाती है । भागवत गीता में 18 अध्याय और 720 श्लोक हैं यह स्वयं परमात्मा द्वारा बोलीं गई थी । भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर जो उपदेश अर्जुन को दिए थे उन्हें ही भगवत गीता में लिखा गया है । यह आत्मा को परमात्मा, उसकी सृष्टि और कायदों के बारे में समझाती है जिनका आत्मा को मनुष्य रूप में जरूर पालन करना चाहिए । इसके आधार पर शरीर छोड़ने पर ही आत्मा के अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब होगा और इस मनुष्य रूपी शरीर से मुक्ति मिलेगी । हमारी आत्मा इस जन्म-मरण के चक्र से पार होकर उस परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करती है । श्रीमद्भागवत गीता हमें ईश्वर को समझने और उन्हें प्राप्त करने का रास्ता दिखाती है । गीता को पूरा ध्यान लगाकर पढ़ें और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें आज हम आपको भागवत गीता के सार के बारे में जानकारी देगें । 


पूर्ण सिद्धि योगी बन सकते हो


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि सच्चे मन से भगवान की पूजा करने से व्यक्ति पूर्ण सिद्धि को भी प्राप्त कर सकता है । जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में कर लेते हैं और ईश्वर की आराधना करते हैं उन्हें परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति होती है । ऐसे लोग सिद्धि को प्राप्त करकर सिद्ध पुरुष बन जाते हैं । 


खुद को ईश्वर को समर्पित कर दो


जो व्यक्ति खुद को ईश्वर को समर्पित कर देता है तो ईश्वर ही उसका सहारा बन जाते हैं इस प्रकार से वह चिंता, शोक और भय से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है । गीता के उपदेशों से यह बात पता चलती है जब इंसान अपना सब कुछ ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है तो उसे जीवन में आनंद की अनुभूति होती है । 


मनुष्य के साथ हमेशा ईश्वर हैं


गीता के सार में बताया गया है कि हर व्यक्ति के साथ ईश्वर है ईश्वर उसे अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करते हैं । अगर हम यह मान लेते हैं कि इस समय संसार को चलाने वाला एक ईश्वर है और उसके हाथ में यह समस्त संसार है तो हमारा जीवन बदल जाएगा । हमें दुखों में घबराना नहीं चाहिए क्योंकि ईश्वर ही आपको इस मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता दिखाता है इसलिए ईश्वर पर हमारा अटूट विश्वास होना चाहिए । 


जन्म, मृत्यु और जीवन का चरण


श्रीभागवत गीता के अनुसार परिवर्तन ही इस संसार का नियम है । गीता में कहां गया है कि जिसे तुम मृत्यु समझकर डरते हो वह भी जीवन ही है क्योंकि मृत्यु के बाद फिर से नया जीवन शुरू होता है । यहां सब कुछ बदलता रहता है जैसे आज कोई अमीर है तो कल कोई गरीब बन जाता है इसलिए गीता की इन बातों को समझकर अपने जीवन में उतारना चाहिए । सारा झगड़ा केवल छोटे-बड़े और अपने पराए का ही है इसे हमें अपने मन से निकाल देना चाहिए, हमें स्वार्थ और लालच को छोड़ देना चाहिए । भगवान श्रीकृष्ण के कहे इन उपदेशों से अर्जुन को दिव्य ज्ञान मिला और भगवान के परम स्वरूप को उन्होंने देखा । श्रीकृष्ण के परम स्वरूप का ज्ञान गीता को जानने वाला हर इंसान प्राप्त कर सकता है । 


इस संसार में तुम्हारा कुछ नहीं


गीता के वचन के अनुसार तुम खाली हाथी ही आए थे और खाली हाथ जाओगे । तुम किसके चले जाने का शौक करते हो क्योंकि तुम तो कुछ भी साथ में नहीं लेकर आए थे जो तुमने खो दिया है । जिस धन-दौलत और वैभव को तुम अपना समझ रहे हो वह सब तो भगवान द्वारा तुम्हें दिया गया है इसलिए तुम तो खाली हाथ आए हो और खाली हाथ ही जाओगे । जिसे तुम भूल से अपना समझकर दुखी हो वह तो तुम्हारा भ्रम ही है क्योंकि तुम्हारा तो कुछ भी नहीं है सब तो ईश्वर का है । गीता में कहां गया है कि समस्त दुखों का कारण यही है कि संसार की सभी वस्तु को तुम अपना मान लेते हो । 


केवल वर्तमान की सोचो


अक्सर व्यक्ति बीती हुई बातों को याद करकर दुखी होता रहता है या भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है । यह चिंता उसे अंदर ही अंदर परेशान करती रहती हैं क्योंकि कहां जाता है चिंता चिता के समान होती है इस चिंता की कोई दवा भी नहीं है । गीता के उपदेश के अनुसार व्यक्ति व्यर्थ में ही बीते समय की बातों पर अपना समय बर्बाद कर देता है और अफसोस करता है भविष्य की चिंता कि कैसे किसी चीज को प्राप्त किया जाए । इन बातों में फसकर इंसान वर्तमान पर ध्यान ही नहीं देता है इसलिए गीता का कथन है कि इंसान को बीते समय की चिंता नहीं करनी चाहिए और बीती हुई बातों के बारे में सोचकर परेशान नहीं होना चाहिए । हमें केवल वर्तमान को अच्छा बनाने के बारे में सोचना चाहिए जिससे हमारा भूत और भविष्य खुद ही ठीक हो जाएगा । हमें यह मानना चाहिए जो हो चुका है, जो हो रहा है और जो होने वाला है सब अच्छा ही अच्छा होगा । गीता इन सकारात्मक बातों के द्वारा इंसान को चिंता ना करकर कर्म करने को प्रेरित करती है । 


ईश्वर की शरण में चले जाओ


श्रीकृष्ण अर्जुन की सभी समस्याओं का समाधान पल भर में ही कर देते थे । जो भी सभी धर्मों का त्याग करकर श्रीकृष्ण की शरण में आता है उसे श्रीकृष्ण स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें उनके समस्त पापों से मुक्त कर देते हैं । भगवान कृष्ण कहते हैं तुम शौक मत करो मेरी शरण में आओ मैं तुम्हें हर पाप से मुक्त कर दूंगा । श्रीकृष्ण ने मोह-माया का त्याग, कर्म को स्वीकार करना, कर्म करना और फल की चिंता ना करना और क्रोध और ईर्ष्या का त्याग करना बताया है । श्रीकृष्ण सभी मनुष्यों को अपनी शरण में बुला रहे हैं वह उनके पापों को माफ कर देंगे । 


ज्ञान से ही ईश्वर प्राप्त होते हैं 


श्रीकृष्ण ने परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए कहां है जो इंसान ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं, अपनी इंद्रियों पर काबू रखते हैं और मेहनत करने वाले होते हैं वह जल्दी ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं । फिर ज्ञान प्राप्त हो जाने पर उन्हें जल्द ही परमशक्ति की प्राप्ति होती है । उस इंसान का मन अपने कार्यों से भटकता नहीं है इस प्रकार वह ईश्वर को प्राप्त कर लेता है । 


हमेशा अच्छे कर्म करो


श्रीकृष्ण कहते हैं कि श्रेष्ठ इंसान जैसा व्यवहार करते हैं यानी वह जो-जो कार्य करते हैं दूसरे व्यक्ति भी वैसा ही व्यवहार यानी कार्य करते हैं । उत्तम व्यक्ति जो उदाहरण प्रस्तुत करते हैं समस्त मनुष्य उसी का पालन करने लगते हैं इसलिए उत्तम व्यक्ति को हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए । 


कर्मयोगी बनने की सीख


भगवान श्रीकृष्ण कर्म की महानता के बारे में बताते हैं कर्म करो लेकिन फल की चिंता मत करो को समझाते हुए श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है लेकिन कर्म के फलों पर नहीं, काम करने में तुम्हें मन लगाना चाहिए । इसमें श्रीकृष्ण ने कर्म की महानता को बताया है यह वचन मानव जीवन के लिए सबसे कल्याणकारी है कर्म, दर्शन और योग का पूरा सार इसी पर आधारित है । कर्म से ही मनुष्य का निर्माण होता है हर व्यक्ति को कर्म करके ही सिद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है । श्रीकृष्ण कहते हैं जो अपने कामों के प्रति समर्पित रहता है और कार्यों को अच्छी तरह से पूरा करता है वह जीवन में सफलता प्राप्त करता है । कर्म प्रकृति के द्वारा कराए जाते हैं बिना कर्म के इस संसार में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है । 


अच्छे व्यक्तियों का कल्याण होता है


जो लोग अच्छे होते हैं और अच्छे कार्य करते हैं ईश्वर को उनकी जिम्मेदारियों और रक्षा की जिम्मेदारी स्वयं लेनी पड़ती है मतलब अच्छे व्यक्तियों की रक्षा के लिए ईश्वर अवतार लेते हैं । इसलिए सभी इंसानों को अच्छाई के रास्ते पर चलते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए । श्रीकृष्ण जी कहते हैं धर्म की स्थापना के लिए अर्थात अच्छे लोगों के कल्याण के लिए और दुष्ट लोगों के विनाश के लिए मैं हर युग में समय-समय पर जन्म लेता हूं । कहने का तात्पर्य है भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर युग में जन्म लेते हैं और दुष्ट व्यक्तियों का विनाश करते हैं यानी सृष्टि की रक्षा करते हैं । 


आत्मा अजर अमर है


श्रीकृष्ण के इस उपदेश का अर्थ है कि आत्मा को ना शस्त्र से काटा जा सकता है, ना ही उसे जला सकते हैं, आत्मा पानी से भी नहीं भीगती और आत्मा को ना हवा सुखा सकती है । गीता के इस वचन के अनुसार आत्मा अमर और शाश्वत है अगर इंसान की आत्मा मोह-माया के बंधन में रहती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है । इसलिए आत्मा का शुद्धिकरण जरूरी है यह शरीर नश्वर है यह शरीर पांच तत्व अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और अंत में शरीर इसी में मिल जाना है शरीर से आत्मा चली जाएगी क्योंकि आत्मा कभी नहीं मरती । श्रीकृष्ण ने कहां है कि इंसान का शरीर एक तरह का वस्त्र है जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती रहती है । कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य का शरीर एक दिन नष्ट हो जाएगा परंतु आत्मा हर जन्म में शरीररूपी वस्त्र को बदलती है इसे ही जन्म मरण का चक्र भी कहते हैं । मौत के बाद फिर जिंदगी है जब तक आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं होता तब तक वह जन्म लेती है । 


क्रोध बुद्धि का नाश करता है


हमारे बड़े-बूढ़े हमें बताते हैं कि किस प्रकार क्रोध करने से मनुष्य का विनाश होता है । इंसान की बुद्धि जब मारी जाती है तो उसे स्मृति भ्रम हो जाता है बुद्धि के खत्म होने से इंसान खुद का विनाश कर बैठता है । इसलिए हमें क्रोध से दूर रहना चाहिए यह हमारे विनाश का कारण बनता है इस वचन से श्रीकृष्ण ने क्रोध को काबू में रखने की शिक्षा दी है । 


मोह माया का त्याग करें


इस वचन के माध्यम से श्रीकृष्ण ने इंसान को अपने मन में मोह माया के बंधन से मुक्त होने के लिए कहां है । किसी वस्तु के बारे में ज्यादा सोचने से इंसान उसकी मोह माया में डूब जाता है इससे उसमें उस वस्तु को पाने की इच्छा पैदा हो जाती है और कामना में समस्या आने पर क्रोध का जन्म होता है । श्रीकृष्ण ने ईर्ष्या, क्रोध और स्वार्थ जैसे अवगुण से इंसान अधर्म के रास्ते पर चलने लगता है इससे इंसान का नैतिक पतन हो जाता है । 


चिंता छोड़कर कर्म करो


श्रीकृष्ण ने अर्जुन की समस्या का समाधान करते हुए कहां अगर तुम युद्ध में लड़ते समय वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि युद्ध में विजयी होते हो तो इस धरती के सभी सुखों को पाओगे । श्रीकृष्ण कहते हैं हे अर्जुन उठो और युद्ध करो श्रीकृष्ण ने इस वचन के द्वारा कर्म करने को प्रेरित किया है । वर्तमान कर्म पर ध्यान देंगे तभी सुख मिलेगा आज के समय में तनाव के कारण कई तरह की बीमारियां इंसान को हो रही है । गीता में कहां गया है क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो, किससे डरते हो डर को त्याग दो जब आत्मा ना जन्म लेती है और ना ही मरती है तो डरने की कोई बात नहीं है चिंता से आत्मा और शरीर को दुख पहुंचता है । 


धर्म की रक्षा के लिए अवतार


यहां अर्जुन से श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की ग्लानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब-तब मैं स्वयं श्री कृष्ण धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेता हूं अर्थात अपनी रचना करता हूं । पृथ्वी पर पाप बढ़ने पर ईश्वर स्वयं किस रूप में आकर उसका अंत करते हैं और उससे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं । 


सन्देह इंसान के दुख का कारण


जिन व्यक्तियों में सन्देह की आदत होती है या शक करते हैं ऐसे लोगों के बारे में श्रीकृष्ण ने कहां है कि सन्देह की आदत व्यक्ति के दुख का कारण बनती है । शक करने की आदत ऐसी है जो अच्छे से अच्छे रिश्ते को भी बेकार कर देती है शक करने वाले इंसान बाद में पश्चाताप करते हैं । 


स्वार्थी मत बनो


श्रीकृष्ण ने उन व्यक्तियों के लिए बड़ी सीख दी है जो व्यक्ति दूसरों की भलाई नहीं करते और सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते हैं उनका कभी भला नहीं होता । इंसान का स्वार्थ उसे बाकी लोगों से दूर करकर नकारात्मकता की और लेकर जाता है जिसके चलते इंसान अकेला रह जाता है । स्वार्थ शीशे पर लगी धूल की तरह है जिसके कारण व्यक्ति अपना चेहरा ही नहीं देख पाता है । अगर आप चाहते हैं कि अपना जीवन खुशी से व्यतीत करें तो इसके लिए आप अपने स्वार्थ को कभी अपने पास नहीं आने दे क्योंकि स्वार्थी व्यक्ति दोस्ती भी अपना स्वार्थ निकालने के लिए करते हैं । 


अधिकता इंसान के लिए बड़ा खतरा


श्रीकृष्ण कहते हैं इंसान के लिए किसी भी प्रकार की अधिकता खतरनाक साबित हो सकती है । जिस प्रकार रिश्ते अच्छे हो या बुरे, खुशी हो या गम हमें किसी भी परिस्थिति में अति नहीं करनी चाहिए और जीवन में संतुलन बनाकर रखना चाहिए । जब तक व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन नहीं बनाकर रखेगा वह हमेशा दुखी ही रहेगा मनुष्य को जरूरत से ज्यादा कोई चीज नहीं करनी चाहिए । 


अपने काम को मन लगाकर करें


जो व्यक्ति अपने काम को मन लगाकर करते हैं और काम में खुशी ढूंढते हैं वह जरूर सफल होते हैं । वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी भी काम को बहुत समझकर करते हैं और जल्दी से निपटाना चाहते हैं ऐसे लोग किसी भी कार्य को सही तरीके से नहीं कर पाते और अपने जीवन में पीछे रह जाते हैं । 


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