महाभारत काल के 10 सबूत | Proofs Of Mahabharata In Hindi

 

Mahabharat Kal Ke Saboot
Mahabharat Kal Ke Saboot

Mahabharat Kal Ke Sach Hone Ke Saboot


महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य ग्रंथ है जिसे भारत का सबसे इतिहासिक ग्रंथ माना जाता है । हिंदुओं के काव्य ग्रंथ को पंचम वेद माना जाता है महर्षि वेदव्यास ने संपूर्ण विवरण के साथ यह ग्रंथ लिखा था । हिंदू धर्म में माना जाता है कि महाभारत में वर्णित घटनाएं सत्य और प्रमाणित है लेकिन फिर भी बहुत से लोग इसे काल्पनिक मानते हैं । इसे धर्म और अधर्म के बीच हुआ सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है लेकिन महाभारत को लेकर हमेशा ही बहस होती रही है । आज के आधुनिक इतिहासकार इस पर विश्वास नहीं करते हैं वहीं कुछ लोगों का यह अटूट विश्वास है कि महाभारत की घटनाएं वाकई में घटित हुई थी । ऐसे कई सबूत आज भी मौजूद है जिससे यह पता चलता है कि श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था और महाभारत असली है । आज हम आपको महाभारत काल के सबूतों के बारे में जानकारी देगें ।


कुरुक्षेत्र की लाल मिट्टी


यह तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था जोकि हरियाणा राज्य में स्थित है । कहते हैं उस समय भयंकर युद्ध में बहे खून की वजह से वहां की जमीन लाल हो गई थी । पुरातात्विक विशेषज्ञों ने भी माना है कि महाभारत की घटना सच थी उस जगह पर तीरो और भालो को जमीन में गड़ा पाया गया है । जिनकी जांच में यह पता चला है कि यह 2800 ईसा पूर्व के हैं जोकि लगभग महाभारत काल के समय के बने हुए हैं । 


अर्जुन का चक्रव्यूह


आप महाभारत में अर्जुन के चक्रव्यूह के बारे में जानते होंगे लेकिन आपको पता है इस चक्रव्यूह का जीता जागता सबूत आज भी मौजूद है हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सोलह सिंहवी धार के नीचे बसा राजनोड़ गांव एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में मशहूर है । यहां पर पांडव अज्ञातवास के दौरान रुके थे इसी समय अर्जुन ने यहां पर चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त करके उसे पत्थर पर बनाया था जो आज भी यहां मौजूद है । इस चक्रव्यू को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि अंदर जाने का रास्ता तो साफ दिखाई देता है लेकिन बाहर आने का रास्ता पता नहीं चलता इस जगह को पीपलू किले के नाम से भी जाना जाता है । 


ब्रह्मास्त्र और न्यूक्लियर हथियार


महाभारत में आपने ब्रह्मास्त्र नाम के भयंकर अस्त्र के बारे में सुना होगा यह अस्त्र ब्रह्मा द्वारा धर्म और सत्य को बनाए रखने के लिए बनाया गया था । जोकि विनाशकारी परमाणु हथियार था जिसको केवल दूसरा ब्रह्मास्त्र ही रोक सकता था जो इसे चलाता है वही इसे वापस लाने की क्षमता भी रखता है । रामायण में भी लक्ष्मण ने मेघनाद पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार करने का सोचा तो भगवान श्रीराम ने यह कहकर रोक दिया कि अभी इसका प्रयोग करना सही नहीं है क्योंकि इससे सारी लंका नष्ट हो जाएगी और कई बेकसूरों की जान चली जाएगी । ब्रह्मास्त्र बेहद खास होता था जिस कारण महाभारत और रामायण काल में यह सिर्फ गिने-चुने योद्धाओं के पास ही होता था रामायण में यह अस्त्र लक्ष्मण और महाभारत में यह द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, कर्ण और अर्जुन के पास था । यह अस्त्र पूरी दुनिया को नष्ट करने की ताकत रखता है अमेरिका ने जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर को परमाणु बम बनाने को दिया फिर इसका परीक्षण किया गया धमाके का परिणाम बिल्कुल ब्रह्मास्त्र की तरह था । इसके बाद वैज्ञानिकों ने भी माना इस तरह का शस्त्र महाभारत में इस्तेमाल किया गया था । 


श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी


भगवान श्रीकृष्ण को द्वारका का राजा कहां जाता है और महाभारत में इस बात की जानकारी मिलती है यह नगरी जल में डूब गई थी यानी कि पूरा नगर ही पानी में समा गया था । आपको जानकर आश्चर्य होगा पुरातत्व विभाग को गुजरात के पास समुद्र के नीचे एक पुराना शहर मिला है और इसके सबूतों से यह पता चलता है कि यही द्वारका नगरी है जिसका वर्णन महाभारत में किया गया है । 


केदारनाथ का पशुपतिनाथ मंदिर


पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में पांडवों द्वारा अपने रिश्तेदारों का खून बहाया गया तो भगवान शिव उनसे अत्यंत क्रोधित हो गए थे । फिर श्री कृष्ण के कहने पर सभी पांडव माफी मांगने के लिए निकल पड़े गुप्तकाशी में पांडवों को देखकर भगवान शिव वहां से अदृश्य होकर अन्य स्थान पर चले गए इस स्थान को केदारनाथ के नाम से जाना जाता है । फिर पांडव केदारनाथ भी पहुंच गए लेकिन भगवान शिव उनके आने से पहले ही भैंस का रूप लेकर वहां उपस्थित भैंसों के झुंड में शामिल हो गए । पांडवों ने भगवान शिव की पहचान तो कर ली लेकिन भगवान शिव भैंस के रूप में ही जमीन में समाने लगे तभी भीम ने अपने बल से भैंस रूपी शिव जी को धरती में समाने से रोक दिया । फिर भगवान शिव अपने असल रूप में आ गए और उन्होंने पांडवों को क्षमा कर दिया भगवान शिव का मुंह तो बाहर था लेकिन उनका शरीर केदारनाथ पहुंच गया था फिर जहां उनका शरीर पहुंचा वह स्थान केदारनाथ और उनके मुंह वाला स्थान पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है । यह दोनों मंदिर आज भी मौजूद है इसका मतलब महाभारत का युद्ध भी हुआ था


लाक्षागृह 


महाभारत काल में लाक्षागृह की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है । कौरवों ने पांडवों को जलाने की साजिश के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था लेकिन पांडव सुरंग से निकलकर बाहर आ गए थे । कहां जाता है आज भी यह सुरंग उत्तर प्रदेश के बरनावा नामक स्थान पर मौजूद है । 


महारथी कर्ण का अंग राज्य


कुंती के सबसे बड़े पुत्र दानवीर कर्ण अंग देश के राजा थे जो उन्हें दुर्योधन ने उपहार में भेंट किया था । आज अंग देश को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के नाम से जाना जाता है जरासंध द्वारा अपने राज्य के कुछ हिस्सों को कर्ण को देने की बात भी कही जाती है जो आज बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले के नाम से जाना जाता है । इन राज्यों का स्थान वही है जहां कल था इसे चाहकर भी बदला नहीं जा सकता इस बात से ही आप इसकी सच्चाई का पता लगा सकते हैं । 


श्रीमद्भागवत गीता


जिन्होंने भागवत गीता पढ़ी होगी वह यह भी जानते होंगे इसमें ज्यादातर श्लोक दो लाइनों में लिखे गए हैं । आप किसी भी श्लोक को पढ़े और समझे तो वह कम शब्दों में बहुत अधिक बात कह देते हैं जैसे गागर में सागर । गीता में जो बातें लिखी है वह किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा नहीं बताई जा सकती हैं भले ही मानव सभ्यता का काफी विकास हो गया हो लेकिन आज भी गीता में वह ज्ञान है जो अकल्पनीय है जिसे सामान्य व्यक्ति सोच भी नहीं सकता । जिसे सिर्फ भगवान ही बता सकते हैं यह सबूत है कि भगवान श्रीकृष्ण थे जिन्होंने गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया था अगर अर्जुन थे तो पांडव भी थे इसका मतलब महाभारत भी हुआ था । 


घटोत्कच का कंकाल


कुरुक्षेत्र के पास ही भारतीय पुरातत्व विभाग को खुदाई के समय बेहद ही विशाल आदमी का कंकाल मिला था । जिसको देखकर यह पता चलता था कि यह कंकाल किसी साधारण मनुष्य का नहीं है तभी यह बात उठने लगी है कि यह कंकाल घटोत्कच का है । महाभारत काल के घटोत्कच के बारे में तो आप सभी जानते होंगे जब भीम और हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच महाभारत के युद्ध में लड़ाई करने आया था तब कर्ण ने अपनी शक्ति से उसको मार दिया था । महाभारत के महाकाव्य में दिया गया घटोत्कच का वर्णन भी इसी कंकाल के समान है


अश्वत्थामा


अश्वत्थामा महाभारत की उन सबूतों में से एक है जो इसके साथ सोने का वास्तविक सबूत है । द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा अत्यधिक बुद्धिमान और प्रभावशाली था । बचपन से ही अश्वत्थामा के माथे पर एक मणि था जिस कारण उसे कोई हरा नहीं पाता था । इतिहास में कई बार लोगों ने अश्वत्थामा को देखे जाने की बात कही है इतिहास में तो यह भी लिखा है कि अश्वत्थामा ने ही पृथ्वीराज चौहान को उनका शब्द वैदिक बाण चलाना सिखाया था । आज भी भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जहां अश्वत्थामा रोज सुबह आकर जल और फूल चढ़ाते हैं । जब महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा के पिता गुरु द्रोणाचार्य को कपट नीति अपनाकर मार दिया गया था तो अश्वत्थामा ने गुस्से में आकर द्रोपदी के पांचों पुत्रों का सोते समय वध कर दिया था । फिर अर्जुन गुस्से में आकर अश्वत्थामा का पीछा करने लगे तभी अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया फिर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की तरफ मोड़ दिया । श्रीकृष्ण ने अबोध बालकों और स्त्री की हत्या को अधर्म बताकर गुस्से में आकर अश्वत्थामा के माथे से मणि निकाल लिया और कलयुग के आखिरी तक उन्हें पृथ्वी पर भटकने का शाप दे दिया था । 


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